जख़म अपने दिखाना चाहता हूं।
तुझे मरहम बनाना चाहता हूं।
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नमक जख्मों पे डाला है किसीने।
न उनको अब छिपाना चाहता हूँ।
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वफ़ा मेरी जफा जिसने बताई।
सबक उसको सिखाना चाहता हूं।
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नहीं खूबी मेरी देखी थी जिसने।
उसी से दूर जाना चाहता हूं।
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निराशा से घिरा है आज ये मन।
कि बाहों का ठिकाना चाहता हूं
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कहूं झूठा किसे सच्चा कहूं अब।
हकीकत आजमाना चाहता हूँ।
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मेरे भावों से खेला है सभीने।
सभी से दूर जाना चाहता हूं।
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सुनीता असीम
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