जो आसरा दे कहां वो शज़र मिलेगा मुझे।
कि डूबकर ही लगे अब गुहर मिलेगा मुझे।
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अभी तलक हैं किए कर्म जो भले ही थे।
कि किस जन्म में उनका समर मिलेगा मुझे।
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जो रूह को मेरी दे चैन औ सुकूँ भी दे।
वो चाँदनी को लुटाता क़मर मिलेगा मुझे।
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तलाश करती ठिकाना खुदा के चरणों में।
वहीं चलूंगी जहां वो बसर मिलेगा मुझे।
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समझ लिया था जिसे ख़ैरख्वाह मैंने तो।
पता नहीं था उसीसे ही डर मिलेगा मुझे।
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सुनीता असीम
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