सुषमा दीक्षित शुक्ला

वो उजड़ा चमन याद आता रहा है।


 सुहाना समा दिल जलाता रहा है ।


 


सुलगती शमा सा फ़क़त दिल ये मेरा।


पिघलता पिघलता जलाता रहा है ।


 


ये घायल सी साँसे ये बेचैन आँखें ।


हर इक रोज मुझको चुकाता रहा है ।


 


ये रूहों की चादर में जख्मो के मोती ।


जनाज़ा हमारा सजाता रहा है ।


 


राहे मोह्हबत को माना इबादत ।


ये रस्मे वफ़ा दिल निभाता रहा है ।


 


कभी तो मिलेगा वो हमरूह मेरा ।


यही दिल दिलासा दिलाता रहा है ।


 


फ़ना होके भी तेरा आवाज़ देना ।


अश्कों मे, सुष, को डुबाता रहा है ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


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