क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
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तुम ऋषि अगस्त्य के वंशज हो
जो चुल्लू में सागर पी डाले,
पन्द्रह अगस्त के तुम मतवाले
जो दुश्मन के सपने धो डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
दाधीच की तुमको मिली विरासत
संधान-समर में दे अस्थि वज्र,
हर बार मिले क्यों तुझे नसीहत
तू तो काल को वश में कर डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
परशुराम के तुम सुत कहलाते
जन-विहीन जो धरा कर डाले,
मीरा की माटी से तुम्हें रज मिली
जो विष को भी अमृत कर डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
शून्य को तू-परिपूर्ण करे
व्योंम को 🕉️से भर डाले,
आर्यभट्ट सा तू युग दृष्टा
चाणक्य-चंद्रगुप्त घड़ डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
तू ही पार्थ, तू ही प्रताप
तू ही कर्ण का सामर्थ्य भरे,
तुझमें ध्रुव, एकलव्य भी तू
अभिमन्यु क्षत व्यूह को कर डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
गोविन्द के सपूतों की तुम्हें शपथ
है तेरी भुजा में शिवा-भगत,
आ जाए 'वीर' अपनी करनी पर
तू सागर का भी मंथन कर डाले...
फिर क्यों अरिदल खड़ा धरा
क्यों कर में भुजंग को हो पाले...
वीरेन्द्र सिंह ' वीर '
म.न. ६१/३६२
भारी पानी कॉलोनी
भाभा नगर(३२३३०५)
रावतभाटा, कोटा, राजस्थान
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