विभा रानी श्रीवास्तव

स्व स्वतंत्रता : एक दृष्टिकोण


 


शाखें कट भी गईं तो ठूंठ से कोपल निकलते देखा है,


हाँ! अपने देश में दमन-दलदल से भी संभलते देखा है।


 


समकोटीय यशस्वी मंदिर मस्जिद गिरजा और गुरुद्वारा,


जी! अधिकारों संग दायित्व सिखाए ऐसा संविधान हमारा।


 


बरौनी थर्मल जर्जर स्थिति में था। सन् 2014 जून की बात है। मेरे पति बरौनी थर्मल पावर के महाप्रबंधक थे । उन्हें पटना हेडक्वार्टर में मीटिंग के लिए पहुँचना था। बरौनी से पटना आने में निजी सवारी से दो-ढ़ाई घण्टे का सफर है। बरौनी से हमलोग 5 बजे सुबह निकल गए कि अगर रास्ते में कुछ व्यवधान भी मिला तो 9 बजे तक पटना पहुँच जायेंगे। कुछ देर आराम कर भी हेडक्वार्टर मीटिंग में जाना आसान होगा। सुबह के 10 बजे से मीटिंग थी। हमलोगों की सवारी लगभग सवा आठ (8:15) बजे पटना में प्रवेश कर गई। आधे घण्टे की दूरी के पहले ट्रक, बस, कार की लंबी लाइन या यों कहें जाम से हमारा वास्ता पड़ा और थोड़ी देर में ही यह स्थिति हो गयी कि हमारी गाड़ी हिलने की स्थिति में नहीं रह गई। उस जाम में हमारी गाड़ी शाम के 4 बजे तक उसी तरह भीड़ में फँसी रही।


हाजीपुर और पटना को जोड़ने वाले पुल पर लगने वाला जाम कभी किसी के मृत्यु का कारण, तो कभी किसी की शादी का शुभ लग्न बीत जाने का कारण तो कभी किसी के परीक्षा छूट जाने का कारण बनता है। आखिर यह जाम क्यों लगता है..? लोकतंत्र में अधिकार सभी को चाहिए लेकिन धैर्य से कर्त्तव्य निभाने में अक्सर चूक जातें हैं। चूक जाने की यह आदत-संस्कार किस तरह की परवरिश-परिवेश में पनपता होगा? कुछ तो शिक्षा भी आधार होता होगा। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों को शिक्षा देने की स्वतंत्रता कहाँ होती है..। वे तो शायद बंधुआ मजदूर होते हैं...।


–जनगणना करवाना हो तो शिक्षक.., घर-घर जाकर मतदान पर्ची बाँटना हो तो शिक्षक, ( मतदाताओं का शिक्षक के साथ बदसलूकी से बात करना जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर महिला है तो बिस्तर पर आने का प्रस्ताव देना..,


–कभी-कभी तो शिक्षक को मतदाताओं के द्वारा भिखारी समझ कुछ सिक्के अपने बच्चों के द्वारा दिला देते हैं।) मतदान पेटी उठानी हो तो शिक्षक..


 


–खुले में शौच करनेवालों का निगरानी करना,और उनकी तस्वीर खींच अपने उच्च अधिकारी को भेजना। तस्वीर खिंचते या निगरानी करते पकडे जाने पर आमलोगों से खुद की जमकर मरम्मत करवाना।


और तस्वीरे न भेजने पर अपना वेतन बंद हो जाने का डर  सताना।


 –विद्यालय में नामांकन के समय विद्यालय के आसपास के मुहल्लों के घरों में जा-जा कर अभिभावकों के आगे बच्चों के नामांकन के लिए गिड़गिड़ाना।


–शिक्षक को अपने ही वेतन के लिए चार-चार ,पाँच-पाँच महीने इंतजार करना।


–इस भयावह कोरोना काल में सभी को घर में रहने के लिए लॉकडाउन में रखने के लिए सभी तरह से प्रयास किये गए और शिक्षकों को कोरोनटाइन सेंटर में कार्य पर लगाया गया। प्रवासियों के आने पर डॉक्टर से पहले स्टेशन पर शिक्षकों के द्वारा स्क्रिनिग करवाना। जनवितरण के दुकान में बैठकर करोनाकाल में भीड़ वाली जगह में अनाज वितरण करवाना.. उफ्फ्फ..


 


*शर्म भी शर्मसार है..।*


 


हमें खुली हवा में साँस लेने की आज़ादी चाहिए तो वातावरण में ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन फैलता रहे इसकी कोशिश लगातार करनी चाहिए। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं उनसे धरा को आज़ादी मिलनी चाहिए।


 


मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था। आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे। लेकिन मेरी जीवनी


 


'हम चिंता नहीं करते किसी की, जब खिलखिलाते हैं।


ज़मीर अपनी-आईना अपना, नजरें खुद से मिलाते हैं।।'


 


और झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा। स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था। तब हम सहरसा में रहते थे। दर्जनों मोमबत्ती , सैकड़ों दीप लेकर रात में विद्यालय पहुँचना और पूरे विद्यालय को जगमग करने में सहयोगी बनना आज भी याद है। 50 वीं वर्षगाँठ पर कुछ अरमान अधूरे रह गए जिन्हें 75 वीं वर्षगाँठ पर पुनः उस पल को जी लेने की इच्छा बनी हुई है।


 


सन् 2011-2012 की बात है । रामनवमी चल रहा था । अष्टमी या नवमी के दिन मैं मेरा बेटा और मेरी पड़ोसन शहनाज़ तथा उनकी दोनों बेटियाँ घर के पास ही बने पंडाल में मूर्ति और सजावट देखने के ध्येय से पहुँच गए। रात्रि के लगभग दस बज रहा होगा। जब हमलोग पंडाल के पास पहुँचकर दर्शन कर रहे थे तो कुछ पुलिस कर्मी आकर हमलोगों को हट जाने के लिए कहा।


"क्यों ? हम क्यों हट जाएँ हमें आये तो मिनट भी नहीं गुजरा है।" मैं पूछी


"मुख्यमंत्री आने वाले हैं उनके आने के पहले भीड़ हटा दिया जाना नियम है।" एक पुलिस ने कहा।


"क्या यहाँ मुख्यमंत्री का ऑफिस है या किसी कार्य हेतु..,"


"दर्शन करने आने वाले हैं।"


"तो दर्शनार्थियों की तरह पँक्ति में लगें या गाड़ी में बैठ प्रतीक्षा करें हमारे दर्शन कर हट जाने की।"


"यह आप ठीक नहीं कर रही हैं..,"


"धमकी दे रहे हैं क्या कोई धारा लगता है ? मुख्यमंत्री को बता दीजिएगा , वो जो पूरे लावलश्कर के साथ दस गाड़ियों एम्बुलेंस के साथ निकलते हैं और सड़कों पर चलने वाली जनता को थमा देते हैं। ऑटो बस में सवारी करने वाली लड़की महिला देर से जो आना-जाना गन्तव्य स्थल पर देर से पहुँचती है और व्यंग्य सहती है। जी भर गाली देती है। मतदान के समय जो पैदल चलकर घर-घर घूमते हैं और जीत के बाद शहंशाह बन जाते हैं उनसे आज़ादी की चाहत रखती है जनता।" हमलोग पूरा दर्शन कर ही हटे।


 


'स्व स्वतंत्रता की रक्षा स्व अधिकार भी स्व दायित्व भी'


: सबको अपनी स्थिति तब विकट लगने लगती है जब जंग लड़ने की क्षमता खुद में कम हो और दोषारोपण की आदत बन जाये.. :


 


  *जय हिन्द*


 


विभा रानी श्रीवास्तव


- डाक पता


डॉ. अरूण कुमार श्रीवास्तव


104–मंत्र भारती अपार्टमेंट


रुकनपुरा , बेली रोड


पटना -बिहार *(वर्त्तमान में कैलिफोर्निया-अमेरिका)*


पिनकोड–800014


फ़ोन नम्बर –9162420798


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