विनय साग़र जायसवाल

चाहिए कामयाब से पानी 


माँगिये जी जनाब से पानी


 


पानी लाने में देर पर डाँटा 


उसने फेंका इताब से पानी 


 


कल की नस्लों के वास्ते सोचें


खर्च कीजे हिसाब से पानी 


 


उनके गालों पे अश्क देखे हैं 


जैसे टपके गुलाब से पानी 


 


अपनी तासीर को ही खो बैठा


जब मिला है शराब से पानी 


 


प्यासी आँखों में तब चमक आई 


जब निचोड़ा तुराब से पानी 


 


ऐसी बस्ती में क्या रहें साग़र


जो मिले इंक्लाब से पानी 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


तुराब--मिट्टी


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...