विनय साग़र जायसवाल

मुफ़लिसी से मेरी यूँ चालाकियाँ चलता रहा 


ज़हनो-दिल में वो मेरे ख़ुद्दारियाँ भरता रहा


 


मैं करम के वास्ते करता था जिससे मिन्नतें


वो मेरी तक़दीर में दुश्वारियाँ लिखता रहा


 


मोतियों के शहर में था तो मेरा भी कारवाँ


फिर भला क्यों रेत से मैं सीपियाँ चुनता रहा


 


कहने को मुश्किल नहीं था दोस्तो मेरा सफ़र 


मेरा माज़ी राह में चिंगारियाँ रखता रहा


 


दिल की हर दहलीज़ पर थे नफ़रतों के ज़ाविये


मैं तो हर इक रहगुज़र के दर्मियाँ डरता रहा


 


ख़त के हर अल्फाज़ में थीं इस कदर चिंगारियाँ


मेरे दिल के साथ मेरा आशियाँ जलता रहा


 


कोई आकर छेड़़ता रहता था रोज़ाना मुझे


मैं फ़कत दामन की अपने धज्जियाँ सिलता रहा


 


जब भी बाँहों में समेटे चूमना चाहा उसे


मेरे होंठो पर हमेशा उंगलियाँ धरता रहा


 


जीत की ख़्वाहिश थी साग़र उसके दिल में इस कदर


अपनी हारों पर मेरी क़ुर्बानियाँ करता रहा


 


विनय साग़र जायसवाल


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