इस दर्जा पी रहे हो ये किसके ख़याल में
थे सैकड़ों सवाल किसी के सवाल में
हुस्ने मतला--
रखना इसी ख़याल को अपने ख़याल में
उलझा हुआ हूँ अब भी तुम्हारे सवाल में
तुम आ गये तो घर में बहारें भी आ गईं
दिल फड़फड़ा रहा था कबूतर सा जाल में
आओ चलो चराग़े -मुहब्बत जलायें हम
यह शब गुज़र न जाये जवाब-ओ-सवाल में
भूखा था मैं तो प्यार का फिर कैसे सोचता
सामान मौत का है मुहब्बत के जाल में
वो जब मिला तो वक़्त के सुल्तान सा लगा
इक नूर सा ख़ुमार था जाह-ओ-जलाल में
दिल कर रहा है आज मैं तौबा को तोड़ दूँ
साग़र सुराही जाम पड़े हैं मलाल में
साग़र अदाये-वक़्त से तू भी तो सीख ले
क्यों फ़र्क ढूँढता है हराम-ओ-हलाल में
विनय साग़र जायसवाल
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