उनसे मिलने का सिलसिला होता
बाग़ दिल का हरा भरा होता
मुस्कुरा कर अगर वो कह देते
ग़म का सागर भी पी लिया होता
अपने वादे की लाज रख लेते
कोई शिकवा न कुछ गिला होता
चुगलियाँ कर दीं इन निगाहों ने
वर्ना हर सू न तज़किरा होता
क़त्ल होना ही था मुझे क़ातिल
तू न होता तो दूसरा होता
चैन आता मरीज़े-उल्फ़त को
कोई दस्त-ए-दुआ उठा होता
हम भी मंज़िल नशीन हो जाते
राहबर कोई गर मिला होता
मुद्दतों क्यों जलाते दिल *साग़र*
हमको अंजाम गर पता होता
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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