विनय साग़र जायसवाल

यह कह के तय किये थे सफ़र सूए-दार के


आयेंगे एक दिन तो यहाँ दिन क़रार के


 


रखते हैं लोग उनको ही दिल में संवार के 


जाते हैं जानो-दिल जो वतन पर निसार के


 


कितना सुरूर जज़्बा-ए-आज़ादियों में था


बादाकशों को याद हैं वो दिन ख़ुमार के


 


हम भी तो हैं सपूत तेरे मादर-ऐ-वतन 


इक बार देख ले तू हमें भी पुकार के


 


कहती है बार-बार ये तारीख़ दोस्तो


भागे नहीं हैं हम कभी मैदान हार के


 


हम हैं वतन परस्त शहीदों के जांं नशीं


रख देंगे राहे-फ़र्ज़ में गर्दन उतार के


 


पुरखों का ख़ून अपने सभी मौसमों में है


यूँ हीं नहीं मिले हैं हमें दिन बहार के


 


*साग़र* हैं दुश्मनों की निगाहें इसी तरफ़


आँखों में नक्श रखना हमेशा दयार के


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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