पिलाओ जाम कोई हौसला बढ़ाने को
मैं जा रहा हूँ मुक़द्दर नया बनाने को
ख़ुलूसो-प्यार ज़रा एहतराम से मिलिये
बहार आई है जलवे हसीं लुटाने को
तुम्हारा प्यार ही है ज़िंदगी का सरमाया
हज़ार ख़ुशियाँ लुटा दूँ तुम्हें मनाने को
तुम्हें था कबसे मेरा इंतज़ार यह माना
कि एक फोन ही करते कभी बुलाने को
ज़माने तुझसे शिकायत करूँ तो किस खातिर
किसी का प्यार ही काफी है मुस्कुराने को
उसी की बात पे दुनिया ये सर झुकायेगी
दिखा रहा है जो इक रौशनी ज़माने को
ये दूरियाँ हैं मुक़द्दर में किस कदर *साग़र*
तड़प रहा हूँ गले से तुम्हें लगाने को
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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