विनय साग़र जायसवाल

इश्क़ की आबरू हम बढ़ाते रहे


अश्क पीते रहे मुस्कुराते रहे 


 


जिनसे बिछड़े हुए एक मुद्दत हुई


हर नफ़स वो हमें याद आते रहे


 


यूँ तो वाबस्तगी हर क़दम पर रही


हौसले जाने क्यों डगमगाते रहे


 


इक ज़रा देर की रौशनी के लिए 


जाने क्यों लोग घर को जलाते रहे


 


इस इनायत का कैसे करूँ शुक्रिया


जब भी चाहा वो घर पर बुलाते रहे


 


इस कदर बढ़ गई ख़्वाहिश-ए-मयकशी


हम रहे तशनालब वो पिलाते रहे


 


दौरे-साग़र चला मयकदे में मगर


जश्ने तशनालबी हम मनाते रहे 


 


विनय साग़र जायसवाल बरेली


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