विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल ----


1.


रंग-ए-बहार दिल पे असरदार भी तो हो 


इस कैफ़ियत से कोई सरोकार भी तो हो 


2.


कैसे झुकें ज़मीन की जानिब बुलंदियां


बेदाग़ उनकी अज़्मतो -दस्तार भी तो हो


3.


हर बार सिर्फ़ तुझको पुकारा है इसलिये


तेरे सिवा हमारा मददगार भी तो हो 


4.


क्यों आइनों को लेके यहाँ तुम निकल पड़े 


यह शहर आइनों का तलबगार भी तो हो 


5.


कहते हैं शहर में उसे कुछ लोग बादशाह 


इससे किसी को सोचिये इनकार भी तो हो 


6.


सज जायेंगी अदब शनासों की महफ़िलें 


मीर-ओ-जिगर सा शहर में फ़नकार भी तो हो 


7.


फूले फलेगी फस्ल भी अम्न-ओ-क़रार की 


आपस में अब किसी को यहाँ प्यार भी तो हो 


8.


मुमकिन है सो न पाये सितमगर भी चैन से


ज़ंजीरे -पा में इस कदर झंकार भी तो हो 


9.


तेरी ख़ुशी को मोड़ दूँ कश्ती का रुख मगर


"साग़र "ये सोच हाथ में पतवार भी तो हो 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


      बरेली, यूपी


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