ये कहने लगी धूप ढलते हुए
रखें रौशनी दीप जलते हूए
मुलाकात इसको मैं कैसे कहूँ
मिले मुझसे लेकिन वो चलते हुए
नज़र हर किसी की जवां हो गई
जहाँ चाँदनी थी टहलते हुए
उन्हें देख कर दिल की हालत है यह
कि हो कोई बच्चा मचलते हुए
उड़ा ले गया उनको इक अजनबी
*यहाँ रह गये हाथ मलते हुए*
जो साथी थे सब पा गये मंज़िले
चले हम तो राहें संभलते हुए
तेरे शहर में आके साग़र कभी
नहीं देखा सूरज निकलते हुए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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