भड़कते शोले बुझा दे साक़ी
शराबे-उल्फ़त पिला दे साक़ी
सुराही पैमां छलक न जायें
लबों से मेरे लगा दे साक़ी
ये तशनगी जान ही न लेले
तकल्लुफ़ों को भुला दे साक़ी
पियूं मैं जी भर के आज सहबा
समाँ यूँ रंगी बना दे साक़ी
जिधर भी देखूँ नज़र तू आये
तमाम पर्दे हटा दे साक़ी
नशा रहेगा ये उम्र भर तू
निगाहे-मय भी मिला दे साक़ी
दुआएं तुझको ये देगा साग़र
तू जामो बोतल सजा दे साक़ी
🖋विनय साग़र जायसवाल
तशनगी--प्यास
सहबा-शराब
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