हुआ है जब से चमन में क़याम सावन का
गुलों ने ख़ूब किया एहतराम सावन का
हुस्ने-मतला--
बहार आई है लेकर पयाम सावन का
सुनाओ आज कोई तुम कलाम सावन का
कली कली पे ही भंवरें हैं तान छेड़े हुए
नुमाया रंग है हर सू तमाम सावन का
बहार देख तबीयत जवान होती है
*पिला दो आज निगाहों से जाम सावन का*
सभी हैं ख़ुशियों के आलम में यूँ भी डूबे हुए
था मुंतज़िर हरिक खासो-आम सावन का
बहुत दिनों से उदासी है बज़्म में साक़ी
करो तो आज ज़रा इंतज़ाम सावन का
फ़िज़ाएं देख के दिल बाग़ -बाग़ होता है
बड़ा हसीन है साग़र निज़ाम सावन का
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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