आरती पांडे इंदौर 

आरती


पाटनीपुरा चौराहा इंदौर 


मो..7566821772


 


आलेख दिमागी-आजादी   


                                                 लोग कहते हैं हम आजाद हैं,पर सोच तो आज भी बंदिशों मैं है। लोग कहते हैं 21वीं सदी का भारत हैं ,सदी तो बदली पर भारत नहीं। लोग कहते हैं सब आनलाइन हैं पर विचार तो आज भी आफलाइन हैं। हम आजाद भारत मैं 200 साल की गुलामी के बाद सांस तो आजादी की ले रहे हैं पर सोच आजादी की नहीं हैं। सोच, विचार, और मानसिकता से हम आज भी गुलाम हैं ।जिस भारत को आजाद कराने के लिए अनेकों भारतीय एकजुट हुए. थे आज वो एकजुटता देश से क्या भारत के हर घरों से गायब हैं । भारत की आन- बान- शान उसकी बेटियां होती थीं ,पर आज वहीं मासूम बेटियां घरों मैं भी असुरक्षित हैं।हम अंग्रेजों से आजाद हुए पर अंग्रेजी तरीकों से नहीं। आज देश का 18.साल का बच्चा सिगरेट, बीयर पीता हैं इसे आधुनिकता का नाम देता हैं । आज बच्चा हिंदी नहीं बोल पाता हैं ,और अपने को हिंदुस्तानी कहता हैं।आज की युवा पीढी अपने माता- पिता को वृद्धाआश्चम छोड़ कर आती हैं, और अपने को भारत का लाल कहती हैं।यदि हम वाकई भारतीय हैं और भारतीय होने का दावा करते हैं तो पुनः जरूरत हैं भारतीयता के उन पुराने मापदंडों को अपनाने की ,आज पुनः आवश्यकता हैं कि देश की आन -बान -शान के लिए हम फिर से गांधी, भगतसिंह, बाल गंगाधर तिलक बने ।सही मायनों मैं आजादी को समझे, और समझाये और एक स्वस्थ कुशल ,कोरोना मुक्त भारत के निर्माण मैं अपना योगदान दे।


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