मैं हिन्दी हूँ, हिन्द की भाषा, मुझ पे निशाने मत साधो !
बरसों बाद स्वतंत्र हुयी हूँ, मुझे बेड़ियां मत बांधो !!
आदिकाल से लुटी जा रही, पल पल मेरी आन ही क्यूँ ?
धूमिल हो रही हर दूजे दिन, मेरी ये पहचान ही क्यूँ ??
बचपन में आँचल में अपने, पाला पोसा था तुमको !
अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था, मुझपे भरोसा था तुमको !!
आज मगर अंग्रेजी के बिन, मुश्किल लगता है जीना !
राष्ट्रभाषा का नाम दिया था, ओहदा मेरा क्यूँ छीना ??
मुझे शिकायत निज पुत्रों से, गैरों से मलाल नहीं !
क्यूँ मेरे अस्तित्व की चिंता, करते मेरे लाल नहीं ??
मैं लगती बूढ़ी माँ जैसी, आँखों को न भाती है !
अंग्रेजी बन चली प्रेयसी, हर पल तुम्हें लुभाती है !!
मेरी हालत उस अबला सी, जिसकी साड़ी फटी हुयी !
अंग्रेजी उर्दू अरबी के, पैबंदों से सजी हुयी !!
आज मुझे ही अपनाने में, शर्म तुम्हें क्यूँ आती है ?
क्यूँ अंग्रेजी सेहरा बनकर, सिर पर चढ़ती जाती है ??
सुनो आज तुम सबको मैं, इक सच्चाई बतलाती हूँ !
दुनिया की सब भाषाओं की, मैं ही जीवनदाती हूँ !!
इस धरती पर नयी सुबह का, मेरे बिन आगाज नहीं !
मैं हिन्दी स्वच्छंद सुधा हूँ, एक दिन की मोहताज नहीं !!
अमित अग्रवाल 'मीत'
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