अमित कुमार दवे

एक शिक्षक


कच्ची मिट्टी में …


शीतल जल देखता है…


 तभी तो घट गढ़ता है।


 


एक शिक्षक 


आज मैं कल देखता है…


तभी तो आज पर जीवन निवेश करता है ।


 


एक शिक्षक…


सपनों में जीवन देखता है ।


तभी तो उन्हें जीवंत करने का प्रयास करता है ।


 


एक शिक्षक….


जब स्वयं खपता है….


तभी तो स्वर्णिम युग निर्माण फलता है।


 


एक शिक्षक …


जब सच में शिक्षक होता है….


तब परिवर्तन स्वतः ही दिखता है ।


 


एक शिक्षक……


जब शिक्षकत्व स्वयं का भूलता है…


तभी पतन वह हाथों अपने स्वयं सृजित करता है ।


सच! पतन वह हाथों अपने स्वयं सृजित करता है ।।


 


© अमित कुमार दवे, खड़गदा, राजस्थान


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