माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥
ये हिंदी गंगा यमुना, सी इक नदी है पावन ।
स्वर और व्यंजनों की, लहरें है जिसमें बावन ॥
संस्कृति के स्वच्छ जल में,
भीगो तनिक नहा लो,
नव पीढ़ी आओ आगे, निज शक्तियाँ सँभालो ॥
संस्कृत सी प्यारी माँ की, संतान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥1॥
हिंदी किरीट अपना, हिंदी है माथ बिंदी ।
हिंदी की लोरियाँ सुन, बचपन में पाई निंदी ॥
हिंदी बिछा के सोऊँ, हिंदी ही ओढ़ती हूँ ।
इस हिंदी के सहारे, मैं हिंद जोड़ती हूँ ॥
एका के वास्ते इक, अभियान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥2॥
केशव कबीर मीरा, रसलीन ने सँवारा ।
नव कवि हैं हम तो अब ये, दायित्व है हमारा ॥
हिंदी के शब्द मोती, लिपि सीपियों सी नागर ।
हम बूंद बूंद करके, भर देंगे हिंदी गागर ॥
गोते ज़रा लगा लो, रसखान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥3॥
हिंदी है मातृ भाषा, भाषा न मात्र करना ।
है जग में श्रेष्ठ हिंदी, हमको इसे है वरना ॥
शोभा विहीन वरना, ये देश होगा अपना ।
उत्थान औ उन्नति का, तब सत्य होगा सपना ॥
अपना के इसको देखो, उत्थान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥4॥
माँ भारती को उसका, सम्मान तो दिलाओ ।
भारत के नाम को अब, अनुवाद से बचाओ ॥
क्यों इंडिया कहें अब, भारत कहे ज़माना ।
सार्थक तभी तो होगा, हिंदी दिवस मनाना ॥
भारत के लाड़लों का, अभिमान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥5॥
माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।
इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥
- अंजुमन 'आरज़ू' ©✍
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