अर्चना द्विवेदी

सूक्ष्मजीव समझा गया,करो प्रकृति से प्रीत।


सब में ईश्वर अंश है,बनो सभी के मीत।।


 


लोभ लालसा छोड़कर,रहे संयमित काम।


कैसी भी हो आपदा,होगी निश्चित जीत।।


 


मोल नहीं धन धान्य का,समझ चुका इंसान


कम संसाधन में रहे,दिन खुशियों में बीत।।


 


 


पिंजर में रहना लगे,जैसे मृत्यु समान।


चार दिनों की क़ैद ने,समझायी यह रीत।।


 


जीने की आदत बने,कोरोना के संग।


दैनिक चर्या शुद्ध हो,आग्रह यही विनीत।।


 


जब जब अम्बर तक बढ़े,मानव अत्याचार।


धरती संहारक बने,देखे अगर अतीत।।


              अर्चना द्विवेदी


       अयोध्या


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