दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

नीम सी लगती जीवन धारा


उठा पटक सी चलती रहती है


धूप छांव है जीवन में पर 


मीठी सी जीवन लगती है।


 


समीर अमन का चलता है


कौशल की सरिता बहती है, 


प्रभु तेरी कृपा अकिंचन पर  


मेरे उर में कविता बसती है।


 


श्रद्धा अरू विश्वास का देखो


रोज गला दबायी जाती है


मधुमास हृदय कोमल मन को


जलप्लावन में उलझायी जाती है।


 


जीवन मृत्यु का अर्थ यहां 


कब किसे समझ में आती है


मानव बनने के चाहत में


बस सच्चाई छुपाई जाती है।


 


काम क्रोध मद लोभ से 


जीवन नरक बनायी जाती है


अहम भाव को त्याग सदा


मानव प्रेम बसायी जाती है।



 दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


 महराजगंज उत्तर प्रदेश।


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