दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

कुवार माह के कृष्ण पक्ष में


पितृ पक्ष आ जाता है


मनोभाव से तर्पण कर 


मानव तृप्त हो जाता है।


 


पितृ पक्ष में पितर हमारे


सूक्ष्म रूप में आ जाते हैं


पावन धरा पर आकर ही


आशीष हमें दे जाते हैं।


 


पितृ पक्ष में ढूंढते रहते


पंचबली अपने-अपने भाग


माता-पिता के श्राद्ध कर्म का


पूड़ी खीर पकौड़ी और साग।


 


पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म से


यदि मानव विमुख हो जाता है


पितरों के कोप भाजन से


मानव का अनिष्ट हो जाता है।


 


सुत को चिंता में देख पितर


पंचबली के रूप में आते हैं


चिंता सब हर आशिष दें


पितर मात-पिता हो जाते हैं।


 


मात - पिता इस धरा पर 


देते स्नेह सदा हैं देव समान


ओझल होते इस धरा से ही


यादों में रहते प्रतिरुप ध्यान।


 


श्रद्धा से यदि श्राद्ध करें 


पितृ संतुष्ट - मुक्त हो जाते हैं


कष्टों को हर देते आशिष हमें


हम सबको सुखी कर जाते हैं।



   दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


     महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


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