वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो
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हाथों की मिटती लकीर तो देखो
वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो
भूलकर मंजर जब हम चलने लगे
पैरों को जकड़ती जंजीर तो देखो
जख्म ताजा मेरे और भरे भी नहीं
कि सीने में उतरता तीर तो देखो
भुला दी हमने याद जिनकी जिगर से
उस बेरहमी को फिर करीब तो देखो
मौत कि हमने उनसे की थी गुजारिश
ना मिली रहमत में कोई फकीर तो देखो
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
9828863402
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