तत्वज्ञान विषय
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त्याग संशय जान मुझको
लगा चित्त पहचान मुझको
जानकर ज्ञान मुझको
मानकर विज्ञान मुझको
हो कर मेरे परायण
और फिर मान मुझको || -1
शेष नहीं कुछ भी मुझसे
हूं ज्ञान मैं विज्ञान मैं
है विभूति बल जो तुझमें
उस तत्व की भी जान मैं
हूं पराजय का भी कारण
हूं जीत का सम्मान मैं || -2
अब जान अपरा अचेतन
भूत भाव परा चेतन
पृथ्वी जल अग्नि गगन
वायु बुद्धि अहंकार मन
अष्ट तत्व में है प्रकृति
भूत भाव में मानव वृत्ति
दोनों तत्व है प्रकृति में
दोनों भाव मानव प्रवृत्ति में || -3
हे पार्थ :-
पृथ्वी को प्रभव मान
जल को जीवन कारण
गगन को शून्य जान
वायु को प्राण धारण
अग्नि को तेज मान
अहं विनाश कारण
मन को स्वार्थ जनित
बुद्धि को दुख निवारण || -4
मैं हूं तू है तू है मैं हूं
तू जग में है मैं जगती हूं
खोल रहा हूं भेद सारे
सुन ले "पार्थ" तू मेरे प्यारे ||-5
मैं ही जग का प्रभव
मैं ही जग की प्रलय हूं
मैं ही जग का मूल कारण
मैं ही जगती की लय हूं
है नहीं कारण कोई दूजा
मैं ही कारण मैं ही बजह हूं ||-6
जिस सूत्र से जगत बंधा है
उसका धागा भी मैं हूं
मोती वन जो तुम पिरे हो
वही कृष्ण राधा भी मैं हूं ||-7
सुन पार्थ तू मेरे प्यारे
सूर्य चंद्र की ज्योति मैं हूं
जल तरल में रस भी मैं हूं
वेदों में ओमकार भी मैं हूं ||-8
मैं ही मान हूं
मैं ही मर्यादा
मैं ही यश
मैं ही अपयश हूं
पर भक्तों के
परबस हूं || -9
गूंजता शब्द आकाश में
विरह गोपियों के रास में
हे "पार्थ"
मैं तुझ में वीर्य तत्व हूं
मैं ही तेरा पुरुषत्व हूं
धरा से आती गंन्ध मैं हूं
पुष्पों से निकलती सुगंध मैं हूं
अग्नि में उसका तेज मैं हूं
बहती हवा का वेग मैं हूं ||-10
मैं पल घड़ी और समय हूं
मैं ही सनातन और विषय हूं
मैं ही बुद्धि चंचल मन हूं
मैं ही कारण जीवन मरण हूं
मैं ही सत हूं मैं ही गत हूं
मैं ही विचार में ही मत हूं ||-11
मैं वीरों का सामर्थ हूं
और कामियों का काम
धर्मशास्त्र सब मुझसे
हे पार्थ मुझे पहचान ||-12
वही प्रभु शब्द हैं
वही गीता ज्ञान है
मैं बीके एक प्रचारक हूं
यह ज्ञान तो गंगा समान है ||
"ॐ श्री कृष्ण शरणम प्रपद्ए मम् नमः"
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
9828863402
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