डॉ बीके शर्मा

कलम रोती है


 


क्यों धागों में तू आंसुओं के मोती पिरोती है


क्यों कलम हाथों में मेरे आ करके रोती है 


 


क्यों विरह बन के शब्द गिरता है कागज पर


क्यों यह कलम कागज की छाती भिगोती है 


क्यों कलम हाथों में मेरे ........


 


क्यों गोता जन बनकर मापती हृदय की गहराई 


क्यों करती उर का मंथन ना इस में तम है ना ज्योति है


क्यों कलम हाथों में मेरे .........


 


क्यों गिरते हैं जो हृदय से उठकर आंखों से अक्सर 


क्यों बीज तू ऐसे इस वीरान में बोती है 


क्यों कलम हाथों में मेरे..........


 


क्यों छोड़ती नहीं जर्जर हृदय का साथ कभी 


क्यों उर के घावों पर शब्दों का मरहम संजोती है 


क्यों कलम हाथों में मेरे.........


 


क्यों छेड़ती मुझको विरह पीड़ा और जलन में 


क्यों मगन होकर मेरी लगन में मुस्कुरा कर रो देती है 


क्यों कलम हाथों में मेरे.........


 


 


डॉ बीके शर्मा


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


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