डॉ बीके शर्मा

यह ज्ञान तो गंगा समान है


 


जगती मुझ पर बार करे 


मैं जगती पर बारूं |


लूटे जगती लुट जाऊं मैं 


मन से कभी ना हारूं ||


 


 ब्रह्म रूप इस अग्नि में


 दे दूं तन की आहुति |


ऐसी भस्म बनूं में जलकर


क्रिया रहें ना मेरी अछूती ||


 


 तुम अविनाशी तुम ही सनातन


 आपका चिंतन मेरा हवन हो |


आप परम हैं आप पिता हैं


आप में ध्यान आप में मन हो ||


 


अब प्राणों से प्राण यज्ञ है


क्या कर्म और क्या कर्तव्य है |


सृष्टि कर्ता तत्वों के स्वामी


क्या द्रव्यमय क्या ज्ञान यज्ञ है ||


 


आपको अर्पण मेरा तन मन 


आप ही करते दुख का छेदन


यह ज्ञान तो गंगा समान है 


ऐसा तेरा गीता ज्ञान है।


 


डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


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