यह ज्ञान तो गंगा समान है
जगती मुझ पर बार करे
मैं जगती पर बारूं |
लूटे जगती लुट जाऊं मैं
मन से कभी ना हारूं ||
ब्रह्म रूप इस अग्नि में
दे दूं तन की आहुति |
ऐसी भस्म बनूं में जलकर
क्रिया रहें ना मेरी अछूती ||
तुम अविनाशी तुम ही सनातन
आपका चिंतन मेरा हवन हो |
आप परम हैं आप पिता हैं
आप में ध्यान आप में मन हो ||
अब प्राणों से प्राण यज्ञ है
क्या कर्म और क्या कर्तव्य है |
सृष्टि कर्ता तत्वों के स्वामी
क्या द्रव्यमय क्या ज्ञान यज्ञ है ||
आपको अर्पण मेरा तन मन
आप ही करते दुख का छेदन
यह ज्ञान तो गंगा समान है
ऐसा तेरा गीता ज्ञान है।
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
9828863402
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