डॉ. निर्मला शर्मा

दिन और रात की देखो बड़ी है सुंदर बात


एक दूजे के पूरक दोनों रहते आस- पास


दिन में होता है उजियारा फैलाता उल्लास


रात ढले सपनों में खोते मधुर नींद के साथ


दिन में करते सभी परिश्रम होठों पर ले मुस्कान


रात हुई घर मे सब आते वक्त बिताते साथ


सामासिक शब्द ये सुंदर द्वंद्व है इनका भेद


एक दूजे के विलोम शब्द हैं व्याकरण में देख 


दूर क्षितिज में कभी हैं मिलते सुबह शाम अभेद


देख चक्र इनके जीवन का लेवे ज्ञान हरेक


हर क्षण हो तटस्थ निज कर्तव्य निभाते दोनों


कभी न करते चूक तभी हैं घड़ी बनाते दोंनों


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...