डॉ निर्मला शर्मा

एक रोटी की खातिर


 घर छूटा, छूटा आंगन, 


छूटा रिश्ता, छूटा है सारा गांव 


एक रोटी की खातिर छूटी 


मनमोहक वह छांव 


समय है बीता बीती रैना


 दिन भी ढल- ढल जाए


 रोटी की खातिर मानव यूँ


 इत-उत भटका जाए 


बेरोजगारी से भुखमरी बढी है


 पेट ना जान पाए 


सुरसा के मुख सी भूख ये


 पेट में अगन बढ़ाए


 गांव छोड़ शहर का रुख कर


 मैं चलता चलूं निरुपाय


 दौड़-धूप मजदूरी करके 


रोटी का करूं उपाय


 एक रोटी की खातिर ही तो 


मनुज है लड़ता जाए 


राणा प्रताप सा


 स्वाभिमान ना किसी में


 जो घास की रोटी खाय


रोटी ही ईमान डिगा दे 


रोटी ही ईमान सजा दे 


कहते हैं बड़े बुजुर्ग ये


रोटी मन की दशा बदल दे


 जैसा खाओगे अन्न


 वैसा ही तन मन 


करो परिश्रम कठिन न लाओ


 बेईमानी का अन्न


एक रोटी की खातिर बनो ना 


मानव से तुम दानव 


रखो धैर्य ,संतुष्टि मन में


 करो ना तुम लालच लाघव


 ~~~~~~~~~~~~~


 


परिवार


सुनता मा मीठ लागे


कलह मा मीठ भागे


सरी दुःख ला, मिल जुरके झेल


अइसन हावे,ये परिवार के खेल ह


अपन मै ला छोड़ के


परिवार ला संवारे के सोच


झन दे कोनो ला लेच्चर जादा


तभे परिवार ह सुग्घर चल थे


सरी दुःख ला, मिल जुरके झेल


अइसन हावे, ये परिवार के खेल ह


नवा उमर जान के


कोनो ह झन इतरावे


देखके अागू म बुढ़वा ला


सबो झन माथ नवावे


आशीष पावे, बड़े बुजुर्ग के


तभे बड़े परिवार म चल पाबे


सरी दुःख ला, मिल जुरके झेल


अइसन हावे, ये परिवार के खेल ह


ददा के तोला मया मिले


दाई के मिले तोला आंचल


सपना ह तोर सच हो जाही


जब पूरा परिवार ह तोला भाही


सरी दुःख ला, मिल जुरके झेल


अइसन हावे, ये परिवार के खेल ह


सुरता आगे बीते जमाना के


अब तो उज्जर उज्जर भेष होगे


काम मा कारी पसीना तन लेे छूटे


भीजे अंग के कपड़ा ह


नइ परे बीमार जादा


सूखी रहय परिवार ह


सुनता मा मीठ लागे


कलह मा मीठ भागे


सरी दुःख ला, मिल जुरके झेल


अइसन हावे, ये परिवार के खेल ह


नूतन लाल साहू


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