दर्पण से भी अधिक
नाजुक होता है विश्वास
जरा सा भी दरका--
तो खंड -खंड हो टूट जाता है
जब होता है किसी पर विश्वास
तो आंखों पर -------
मानो पट्टी बंध जाती है
दिखाई नहीं देता कुछ
उस विश्वसनीय के सिवाय
दुनिया सिमट जाती है
उस क्षण उसी में
पर कहते हैं ना ---------
विश्वास दूसरे नहीं
वही अपने तोड़ते हैं अपना
जो सबसे करीब होते हैं
दिल के पास
जैसे ही-------
टूट कर विश्वास बिखरता है
तो फिर से मानो
हवा में दूर तक बिखर जाता हैं
आदमी के कदमों तले की
जमीन भी नहीं रहती फिर वहां
पैर लड़खड़ा कर
जमीन पर गिरा जाते हैं
आसमान में उड़ने वाले
वह परिंदे पल में ही
पंखों बिन तडपडाते हैं
वर्तमान का-----
यही है यथार्थ यही कहानी
आज---------
हर व्यक्ति की जबान पर
यही है वाणी
प्रतिदिन हर समाचार पत्र के
मुख्य पृष्ठ पर
और टीवी के हर चैनल पर
दिखाई जा रही
विश्वास टूटने की
यही कहानी -------यही कहानी।
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डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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