डॉ.राम कुमार झा निकुंज

शान्ति सहज जीवन सुखी


 


शान्ति सहज जीवन सुखी , मानवता सम्मान।


यही मूल नित सत्य है, ब्रह्म सृजन अभिधान।।१।।


 


परहित यदि मन भावना , तजे मोह मद स्वार्थ । 


सर्व सुखी मुस्कान मुख, शान्ति मिले परमार्थ।।२।।


 


सुष्मित सुन्दरतम प्रकृति , मिला ईश वरदान।


त्याग शील गुण कर्म पथ , शान्ति करें अवदान।।३।।


 


जीवन होता तब सफल , मिले शान्ति आलोक।


दीन धनी समतुल्य है , मिटे त्रासदी शोक।।४।।


 


युद्ध लक्ष्य बस शान्ति का, ध्येय मात्र सत्कर्म।


प्रभु लेते अवतार जग , शान्ति दूत बन धर्म।।५।।


 


लोभ मूल हर व्याधि का ,घृणा राग छल मोह।


अहंकार रिपु शान्ति का ,विश्व शान्ति अवरोह।।६।।


 


शान्ति मार्ग जग श्रेष्ठ है , चहुँदिश जन उत्थान।   


खिले चमन मकरन्द बन , धन वैभव मुस्कान।।७।।


 


विश्व शान्ति जग स्वस्ति ही,कारण हरि अवतार।


मीन कूर्म वाराह बन , किये दुष्ट संहार।।८।।


 


वामन बलि मद नाश कर , शान्ति रूप संसार। 


बार बार क्षत्रिय दमन, किया परशु अवतार।।९।।


 


लिया राम अवतार जग , हरे प्राण लंकेश।


नृसिंह रूप भगवान हरि , काल बने असुरेश।।१०।।


 


शान्ति दूत श्रीकृष्ण बन , ले द्वापर अवतार।


पापी कौरव नाश कर , रखा शान्ति आधार।।११।।


 


बुद्ध शान्ति अवतार दस,देख व्यथित जग पाप।


सत्य प्रेम करुणा दया , हरे लोक संताप।।१२।।


 


महावीर शंकर सुमन , सत्य प्रीति पथ शान्ति।


तीर्थंकर अरुणाभ जग , मिटे मोह जग भ्रान्ति।।१३।।


 


शान्ति सुखद सोपान है , शान्ति ईश उपहार।


शान्ति चारु कारण प्रगति,शान्ति कीर्ति आधार।।१४।।


 


शान्ति जगत दुर्जेय है , नवरस का शृङ्गार।


शान्ति सत्य नीलाभ सम , शीतल गन्ध बहार।।१५।। 


 


महायुद्ध शान्त्यर्थ ही , लड़ा गया हर बार।


जब प्रश्न धर्म स्थापना , हुआ शत्रु संहार।।१६।।


 


दहशत का माहौल जग , विस्तारक खल नीति।


दे कोरोना त्रासदी , भूल बन्धुता प्रीति।।१७।। 


 


हृदय रखें सद्भावना , समरसता मकरन्द।


शान्ति पुष्प रस पान कर , मुदित मधुप आनंद।।१८।।


 


परशु गदा गाण्डीव भी , पड़े उठाना चक्र।


विश्व शान्ति अनिवार्य फिर,विनाश शत्रु दुश्चक्र।।१९।।


 


शान्ति मार्ग कल्याण जग, सत्य प्रीति अभिराम।


विश्वबन्धु जब भाव मन , त्याग स्वार्थ सुखधाम।।२०।। 


 


डॉ.राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


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