मैं शिक्षक निर्माणक हूँ,
शिक्षण हेतु बना मैं शिक्षक,
नीति रीति पथ परिपोषित हूँ।
नव जीवन नवयुग आधानक,
मैं नित शिक्षक निर्माणक हूँ।
विनयशील हो त्याग समन्वित,
नवयुग का नूतन वीक्षक हूँ।
नवजातों अरु नवांकुरों के,
नवजीवन रच संरक्षक हूँ।
सिंचन वर्धन ज्ञानामृत से,
सुयोग्य सुपात्र निर्माणक हूँ।
पुराकाल गुरुकुल से लेकर,
विद्यार्थी और शिक्षक भी हूँ।
नवयुगीन शिक्षा पद्धति तक
लक्ष्य सर्वदा शिक्षण भी हूँ।
नित "तमसो मा ज्योतिर्मय गमय"
यह दिव्य अलख जगाया हूँ।
सदाचार नित सद्विचार का
भविष्यार्थ ज्ञान पिलाया हूँ।
अर्थनीति सह धर्मनीति का,
ज्ञानामृत पान कराया हूँ।
सदियों से लेकर अबतक हम,
सारस्वत विहार कराया हूँ।
ज्ञानक्षीर व विवेक नीर से,
विद्यार्थी हंस बनाया हूँ।
गोविन्द श्रेष्ठ बन नवयुग को,
सुरभि चारु पुष्प सजाया हूँ।
सुखद समुन्नत यश सौरभ से,
नित गन्धमाद रच पाया हूँ।
नवपीढ़ी को नवनीत बनाकर ,
भारत गौरव गुण गाया हूँ।
सदा निरत बन परहित शिक्षक,
विद्यार्थी जीवन गायक हूँ।
बुद्धिमान और बुद्धि विशारद,
शिष्य संस्कार दे पाया हूँ।
शुक्र,धौम्य ,कृप, गुरु, संदीपनि,
त्याग सदा गुरु पद पाया हूँ।
वशिष्ठ ,भृगु , रत्नाकर , गौतम,
संघर्षक गुरु बन पाया हूँ।
राम, कृष्ण अरु पार्थ महार्णव,
इतिहास पुरुष निर्माणक हूँ।
प्रकृति सिद्ध निश्छल मनभावक,
त्याग गुण शील उन्नायक हूँ।
श्रावक नायक शुद्ध विनायक,
पथ सार्थवाह दिग्दर्शक हूँ।
सदा समादृत सामाजिक में,
युगपरिवर्तक शुभ शिक्षक हूँ।
ज्ञानामृत बन चरणामृत को,
विद्यार्थी पान कराया हूँ।
सतत विचारक मानक उद्यम,
सुन्दर जीवन रच रत्नाकर हूँ।
देश काल जन भाग्य विधायक,
चिरन्तन मानक शाश्वत हूँ।
दिग्दर्शक जन भावन अनुपम,
यायावर वाहक शिक्षक हूँ।
किन्तु आज मैं बदल गया यूं ,
भौतिकता संलिप्त हुआ हूँ।
गुरुता नैतिकता पर लघुता,
ज्ञान तिमिर में बदल गया हूँ।
धनलोलुप नित अहंकार रत,
सत्मार्ग विरत बन छाया हूँ।
गरिमा गुरुता सम्पूज्य जगत,
मैं शिक्षक अब भूल गया हूँ।
मातु पिता,अभिभावक ,भाई,
विश्वास कहीं अब खो गया हूँ।
मीत प्रीत समभाव समाहित,
क्या मैं अलख जगाया हूँ।
निज गुरुत्व गुरुता सम्मानित,
वात्सल्य, ममता दे पाया हूँ।
अपनापन मधुरिम भाव हृदय,
छात्र मनसि भाव जगाया हूँ।
संरक्षक शासक संचालक,
अहर्निश अग्रदूत बन पाया हूँ।
शान्त धीर व्यक्तित्व मनोहर,
गम्भीर सुभाष रह पाया हूँ।
भौतिक सुख लोभी रत अविरत,
शिक्षक विस्मृत कर आया हूँ।
मैं शिक्षक हूँ वरदान ईश,
गुरुदेव , मानो इल्मकार हूँ।
सप्तसिन्धु विज्ञानक नवरस,
दशा दिशा मनुज परिवर्तक हूँ।
नवयुग का निर्माणक सत्पथ,
आदर्श पुरुष बन छाया हूँ।
यायावर ईमान सत्य पथ,
आलोक ज्ञान गुरु बन आया हूँ।
गौरवमय इतिहास हमारा,
आज इसे हम भूल न जाएँ।
करें सुशिक्षित शिष्यवृन्द को,
नवजीवन का दीप जलाएँ।
ज्ञान पूंज जो चरित पुरोधा,
सद्शिक्षक पद लाज बचाएँ ।
पावन त्रिदेव सम ज्ञानवान,
स्वयं ज्ञान परब्रह्म कहाएँ।
मत पड़ें लोभ के चक्कर में ,
गुरु ख्याति सम्मान भी पाएँ।
चलें पुनः सत्पथ यायावर,
सद्गुरु बन फिर मान बचाएँ।
पर आज हमारी व्यथा- कथा,
गुरु नाम से जन घबराते हैं।
भक्ति प्रेम आदर गरिमा मय,
अब शिक्षक से कतराते हैं।
शिक्षक दिवस के अवसर पर,
निज चिरगाथा हम याद करें।
सच में गुरुतम हम शिक्षक बन,
भारत माता सम्मान करें।
आओ सब मिलकर गुरुगायन,
शिक्षक शिक्षा का शान बनें।
सुमार्ग पुरोधा होता बन,
नवभारत का निर्माण करें।
रचनाकारः डॉ.राम कुमार झा निकुंज
स्थानः नयी दिल्ली
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