मिटे भोर पा अरुणिमा
सुन्दर मधुरिम मांगलिक , हो जीवन उल्लास।
हो उदार मानस मधुर , नवप्रभात उद्भास।।१।।
प्रतिमानक लेखन बने , देश काल परिवेश।
सत्य पूत अभिव्यक्ति से ,जन जागृति संदेश।।२।।
चहुँ विकास सतरंग बन , इन्द्रधनुष नीलाभ।
खिले अधर आगम युवा,खिले प्रगति अरुणाभ।।३।।
करें शान्ति अभिलाष मन , रखें भाव कल्याण।
मिटे वतन से त्रासदी , दीन हीन जन त्राण।।४।।
गेह गेह दीपक जले , शिक्षा शुभ आलोक।
खुशियाँ सुखमय जिंदगी , मिटें रोग भय शोक।।५।।
उदरानल तृषार्त जब , बुझे अन्न जल काश।
गेह वसन तन सुलभ हो ,कटे तभी दुख पाश।।६।।
जीवन जन अहसास मन, शासन में विश्वास।
अगड़े पिछड़े भेद का , मिटे हृदय आभास।।७।।
जाति पाँति अरु धर्म ही , है अवनति का मूल।
आरक्षण की फाँस से , हो उन्नति प्रतिकूल।।८।।
लोभ मोह ईर्ष्या कपट , झूठ लूट मद चाह।
ये विनाश की कालिमा , हो विकास गुमराह।।९।।
लोकतंत्र हो तब सफल, शासक हो ईमान।
भाव मनसि इन्सानियत , हो सबका सम्मान।।१०।।
क्षतविक्षत अभिलाष मन , सौरभ विरत निकुंज।
पतझड़ बन आहें भरे , मुरझाये दलपूँज।।११।।
कुलीनता बाधक सदा , विद्योत्तम बेकार।
फँस आरक्षण दीनता , लूट घूस सरकार।।१२।।
जीवन बस अपमान पा , सहा सदा उपहास।
नीति त्याग सद्कर्म पथ,कठिन जटिल आभास।।१३।।
कविरा है अवसाद मन , शोकाकूल आगम्य।
मिटे भोर पा अरुणिमा , जाति धर्म वैषम्य।।१४।।
डॉ. राम कुमार झा निकुंज
नई दिल्ली
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