वर दे भगवति शारदे!
श्वेत वसन पद्मासना , वीणाधर अभिराम।
वर दे भगवति शारदे , ज्ञानामृत सुखधाम।।१।।
खिले ज्ञान की अरुणिमा , मिटे तिमिर अविराम।
नीति रीति पुरुषार्थ दे , हो परहित सत्काम।।२।।
मति विवेक दे सर्वदे , ब्रह्मरूप हे अम्ब।
ज्ञानानल दुर्बुद्धि हर , सन्निधि तू अवलम्ब।।३।।
चौदह विद्या धायिनी, चतुर्वेद स्वरूप।
हरो तिमिर जग ताप माँ , जन गण हो या भूप।।४।।
भरो सुयश माँ भारती , सत्पथ दो आलोक।
शील त्याग संस्कार से , पूर्ण करो हर शोक।।५।।
हंसवाहिनी विधिप्रिये , श्वेताम्बर परिधान।
शारद सरसिज शारदे , मानवीय दे ज्ञान।।६।।
ममता समता स्नेहिला , सरस्वती जग मातु।
हम कुपूत हैं शरण में , वन्दहुँ चरणहुँ पातु।।७।।
जय जय सुरसरि भारती , भर भारत आलोक।
विद्याधन शुभ प्रगति दे , हरो विघ्न सब शोक।।८।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
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