डॉ.राम कुमार झा निकुंज

फूल और काँटे जीवन बन,


मधुरिम खूशबू महकती हैं।


नित गन्धमाद पंकिल सरोज,


सुख दुख तटिनी बन बहती हैं।


 


काँटें नित संरक्षक पादप,


नवकिसलय पौध पनपती हैं।


विविध रंग सुरभित प्रसून नव,


नव यौवन खिली विहँसती हैं। 


 


काँटे प्रमाण संघर्ष सतत,


विघ्नों में राह दिखाती हैं।


होश निरत नवजोश प्रगति पथ,


उत्थान मार्ग नव गढ़ती हैं।


 


काँटे यायावर विश्रान्त निडर,


दृढ़ संकल्प पथी बनाती हैं।


साहस धीर गंभीर आत्मबल,


जीवन पथ सुगम बनाती हैं। 


 


दुश्मन से नित आगाह मनुज,


काँटे दिग्दर्शक बनती हैं।


सावधान आगत सब आपद, 


माँ आँचल बन रक्षा करती हैं।   


 


है कुटिल नुकीली काँटे नित,


घातक रक्षक बन जाती हैं।


विविध मनोहर पाटल पुष्पित,


चढ़ हरिहर शिखर दमकती है।


 


जो सदा कँटीला जीवन गति,


संकल्प नया नित देती है।


उठा मनोबल साहस धीरज,


सब आपद को हर लेती है। 


 


विश्वास नया हो पथिक अटल,


नवप्रगति कँटीली होती है।


आस्वाद नया मद मोह रहित,


दायित्व नीति बढ़ जाती है। 


 


कुसमित निकुंज मकरन्द मुदित,


काँटों के बीच महकता है।


अलिगान गूंज यश गन्ध विमल, 


अभिनव साफल्य चमकता है। 


 


हमराह बने सुख दुख जीवन,


मुस्कान अधर गम देती है।


आनंद फूल अवसाद कँटिल,


जीवन तटिनी बन जाती हैं। 


 


फूलों से सज काँटें पादप,


निर्भय खुशियाँ मुस्काती हैं।


नित स्वाभिमान संबल जीवन,


जीवन प्रसून सुख देती है। 


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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