मन वेदना
अहंकार निज बुद्धि का ,तिरष्कार नित अन्य।
दावानल अज्ञानता , करते कृत्य जघन्य।।१।।
श्रवणशक्ति की नित कमी,कोपानल नित दग्ध।
तर्कहीन थोथी बहस , सुन हो जनता स्तब्ध।।२।।
सत्ता सुख मद मोह में , राजनीति आगाज़।
फँसी मीडिया सूर्खियाँ , दबी आम आवाज़।।३।।
नित होता नैतिक पतन , हाथरसी दुष्काम।
शर्म हया सब भूल जन , मानवता बदनाम।।४।।
सुरसा सम चाहत मनुज , बनता तिकरमबाज़।
झूठ लूट हिंसा कपट , धन वैभव सरताज।।५।।
पाएँ कहँ इन्सानियत , सत्य धर्म ईमान।
दीन सदा श्रीहीन है , होता नित अवसान।।६।।
किसको चिन्ता देश की , प्रगति प्रजा सम्मान।
जाति धर्म प्रसरित घृणा ,नारी का अपमान।।७।।
दया धर्म करुणा अभी , कहँ पाएँ अब देश।
जिसकी है जैसी पहुँच , गढ़ता निज परिवेश।।८।।
हो समाज दुर्भाष बस , मर्यादा उपहास।
बदले की चिनगारियाँ , तुली दहन विश्वास।।९।।
रीति नीति रचना विधा , बदली लेखन भाव।
आज वही नफ़रत वतन , जाति धर्म दे घाव।।१०।।
स्वार्थ सिद्धि में सब दफ़न,न्याय त्याग कर्तव्य।
मान दान अवदान यश , दीन हीन हन्तव्य।।११।।
कवि निकुंज मन वेदना , आरक्षण का दंस।
अमन प्रीति मुस्कान हर ,सुख वैभव बन कंस।।१२।।
सिसक रही माँ भारती , देख स्वार्थ दुष्कर्म।
लज्जा श्रद्धा गुमसुदा , कहँ परहित सद्धर्म।।१३।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
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