डॉ. रामबली मिश्र

**भज लो माता सरस्वती को।*


 


श्री माता जी नित वरदानी।


महा तपस्वी दिव्य सुजानी।।


 


माँ श्री से ही नाता जोड़ो।


लौकिकता से नाता तोड़ो।।


 


भज लो माँ को कर नित वन्दन।


मँहकोगे तुम जैसे चन्दनं।।


 


करो उन्हीं से ज्ञान प्रसंगा।


चलते रह नित माँ के संगा।।


 


ज्ञान रत्न माँ दिव्य खजाना।


माँ को श्रद्धा सुमन चढ़ाना।।


 


सब कुछ सीखो माँ से केवल।


माँ देती रहतीं शुभ मधु फल।।


 


माँ से प्रीति लगाओ भाई।


करते रह उनकी सेवकाई।।


 


बैठी हंस चली आयेंगी।


शुभप्रद ज्ञान सीखा जायेंगी।।


 


आयेंगी पुस्तक को ले कर।


दे जायेंगी मधुर बोल वर।।


 


वीणापाणी बन आयेंगी।


मोहक गीत सुना जायेंगी।।


 


माँ श्री का आशीष मिलेगा।


हरदम पाल्हा बीस रहेगा।।


 


दिग्विजयी बन सदा रहोगे।


विश्व धरा पर सहज बहोगे।।


 


तेरी बातें सब मानेंगे।


तुमको देव तुल्य जानेंगे।।


 


ज्ञान गंग आँगन में होगा।


स्नेह मान सम्मान सुयोगा।।


 


बुद्धि-सरित उर-आलाय आये।


विद्या महा व्योम गहराये।।


 


करना माँ का प्रिय सत्संगा।।


रहना सुधि-बुधि से अति चंगा।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...