रामरसायन पान कर, यह अमृत अनुपान।
इसके पीने से मनुज, बनता दिव्य महान।।
जिसने इसको पी लिया, बना सहज चैतन्य।
लगा घूमने व्योम में, बनकर सिद्ध सुजान।।
हुई राम से प्रिति तब, माँ सीता से स्नेह।
सदा राम दरबार में, देता सुंदर ज्ञान।।
खुश होते हैं राम जी, सीता मात प्रसन्न।
पीनेवाला लोक में, पाता है सम्मान।।
अहोभाग्य जिसका वही, पाता अमृत- भोग।
सतत बनाकर श्रृंखला, देत रसायन दान।।
जन्म-जन्म के योग का, आध्यात्मिक परिणाम।
पुण्योदय जब होत है, मिलता निर्भय दान।।
करते-करते ध्यान जब, होत ध्यान संपुष्ट।
राम रसायन स्रवित हो, भरत स्वयं मुस्कान।।
जिसने पाया राम रस, उसका हाल न पूछ।
इस सारे संसार में, बना वही हनुमान।।
राम-जानकी की कृपा, से बरसत रस मेघ।
कोई विरला ही करत, इस रस का अनुपान।।
शर्दी गर्मी देत है, गर्मी शर्दी देत।
रामरसायन शुभद की,यह है दिव्य निशान।।
पीनेवाला रामधुन, में हो करके मस्त।
सहज छेड़ता रात-दिन, राम ज्ञानमय तान।।
राम भक्ति में लीन हो, करत मयूरी नृत्य।
महा प्रभू चैतन्य बन, करत राम घन ध्यान।।
हो जाता है लीन नित, अपने में अनुरक्त।
रामकृपा रस अमर पी, पाता आतम ज्ञान।।
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सन्देश शुभद प्यारा
उपदेश भरा है
लगे प्रीति का नारा।
सब मिलकर सदा चलें
भावों का गुंफन
हर दिल में प्यार पले।
नफरत की ज्वाला पर
प्रेम -नीर बरसे
थिरकें प्याला ले कर।
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मातृ शारदा बनें सहायक
मातृ शारदा का हो वंदन।
बनें सहायक माँ सुखनंदन।।
माँ श्री का आशीष लीजिये।
करते रह माँ का अभिनंदन।।
माँ से ही सद्बुद्धि मिलेगी।
माँ विद्यामृत शीतल चन्दन।।
माँ ही ज्ञानधाम शुभ राशी।
देती माँ हैं सबको शिव धन।।
करो सदा माँ श्री की संगति।
बनो सभ्य संस्कार सुयश मन।।
माँ चरणों में लिप्त रहो नित।
रहना चाहो सदा प्रिय मगन।।
सबमें माँ की छाया देखो।
करें सदा माँ दुःख-कष्ट हरन।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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