वाह, क्या खूब
वाह, क्या खूब।
कितना सुंदर नाम तुम्हारा।।
वाह, क्या खूब।
काम तुम्हारा अतिशय प्यारा।।
वाह, क्या खूब।
अति मनमोहक रूप तुम्हारा।
वाह, क्या खूब।
कविता-लेखन कितना न्यारा।।
वाह,क्या खूब।
कितनी अनुपम रचना तेरी।
वाह, क्या खूब।
कितनी मादक प्रीति घनेरी।।
वाह, क्या खूब।
मनमोहक विद्वान तुम्हीं हो।
वाह,क्या खूब।
मानव में भगवान तुम्हीं हो।।
वाह, क्या खूब।
महा तपस्वी बहुत निराला।।
वाह, क्या खूब।
तुम देते खुशियों का प्याला।।
वाह, क्या खूब।
घोर परिश्रम तुम करते हो।।
वाह, क्या खूब।
अति जाड़ा-गर्मी सहते हो।।
वाह, क्या खूब।
तुम इक सुंदर जीवन शैली।
वाह, क्या खूब।
तेरे कारण शुचिता फैली।।
वाह, क्या खूब।
तेरे कारण मानवता है।।
वाह, क्या खूब।
तेरे कारण मधुमयता है।।
वाह, क्या खूब।
तुम्हीं परस्पर प्रिति निभाते।।
वाह, क्या खूब।
सबको प्रियतम राह दिखाते।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
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जरा ठहर जाओ
जरा ठहर जाओ।
कुछ बात तो होने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ रात तो होने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ रात तो कटने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ राह तो चलने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ प्रेम से कहने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ प्रेम तो करने दो।।
जरा ठहर जाओ।
कुछ प्रेम से रहने दो।।
जरा ठहर जाओ।
न जाने कब मिलना हो।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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