माँ सरस्वती का अर्चन हो
बहे भाव रचनामृत बनकर।
फैले सारे जग में बहकर।।
स्वच्छ धवल पावन रचना हो।
उत्तम जग की संरचना हो।।
पाप नष्ट हो पुण्योदय हो।
आत्म भाव का सूर्योदय हो।।
संकट मोचन बन माँ आयें।
मीठे बोल-वचन बरसायें।।
कटु वचनों का अंत समय हो।
सारी दुनिया अब निर्भय हो।।
बने सकल जग पर-उपकारी।
मन बन जाये शिष्टाचारी।।
सकल विश्व हो गुण संपन्ना।
एक दूसरे के आसन्ना।।
प्रिति परस्पर का अलाय हो।
सारा जग अब देवालय हो।।
जग में प्रेम सुधा की वर्षा।
सुंदर भाव जनित हो हर्षा।।
हों प्रसन्न अति मातृ शारदे।
माँ सरस्वती सबको वर दें।।
उर में थिरकन बनकर आयें।
नृत्य गीत साहित्य रचायें।।
माँ सरस्वती का अर्चन हो।
हंसवाहिनी का वंदन हो।।
रचनाकार बनायें माता।
बने ग्रन्थ पावन विख्याता।।
उठ जायें खुशियों की लहरें।
कष्ट शोक दु:ख सदा माँ हरें।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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