डॉ. रामबली मिश्र

परहित हेतु संत दुःख सहते।


अति प्रसन्न फिर भी वे रहते।।


 


नहीं किसी से याचन करते।


शुभ वाक्यों का वाचन करते।।


 


नहीं किसी को कुछ देते हैं।


केवल पीड़ा हर लेते हैं।।


 


शीतलता का परिचय देते।


निष्कामना का विषय बनते।।


 


चन्दन की खुशबू बन जाते।


सबके मन को सदा लुभाते।।


 


काम-क्रोध का नाम नहीं है।


सिद्ध संत का ग्राम वहीं है।।


 


थोड़ा भोजन शयन बहुत कम।


आत्मतुष्ट संत शंकर सम।।


 


आत्मतोष का पंथ दिखाते।


आत्मज्ञान का ग्रन्थ पढ़ाते।।


 


इच्छाओं पर अंकुश रखते।


अमृत वाणी बोला करते।।


 


ब्रह्म क्षेत्र में विचरण करते।


नियमित शुद्ध आचरण करते।।


 


देते हैं उपदेश मनोरम।


अनुकरणीय सन्त अति अनुपम।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


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