डॉ. रामबली मिश्र

मन को भाती अच्छी-सच्ची।


नहीं लुभाती गोली कच्ची।।


 


मन को जो प्रसन्न कर देता।


वही मनोरम दुःख हर लेता।।


 


जो करता है सदा मन-रमण।


गहो उसी की सतत नित शरण।।


 


प्रेम मनोरम अतिशय जानो।


रमण करो इसको पहचानो।।


 


जो मन हर ले वही मनोरम।


वही मनोहर अतिशय अनुपम।।


 


सबके मन को हरते रहना।


अति प्रिय पात्र सभी का बनना।।


 


रमना सीखो रहना सीखो।


परम मनोरम बनना सीखो।।


 


 बहुत मनोरम सुंदरता है।


उससे बढ़कर मानवता है।।


 


मानवता में नैतिकता है।


नैतिकता में सात्विकता है।।


 


सात्विकता में पावन ज्ञाना।


सहज मनोरम वेद पुराना।।


 


वेद-पुराणों को जो पढ़ता।


हृदयांगम कर मनहर लगता।।


 


खिलता जग में बना दिवाकर।


देता अमृत बना सुधाकर।।


 


लिखत मनोरम प्रिय रामायण।


दिखत मनोरम कर पारायण।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


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