डॉ. रामबली मिश्र

चंदन बनकर जीते रहना


 


गम -हाला को पीते रहना।


चंदन बनकर जीते रहना।।


 


चारोंतरफ़ भुजंग खड़े हैं।


मत प्रभाव में इनके पड़ना।।


 


रहो मस्त परवाह किये बिन।


हो निश्चिंत विचरते रहना।।


 


दुष्टों की छाया से बचकर।


राह बनाते चलते रहना।।


 


नहीं छेड़ना कभी किसी को।


भारतीय संस्कृति को गहना।।


 


परेशान मत करो किसी को।


खुशबू बनकर जीते रहना।।


 


रहो कमल सा जग-सरिता में।


जल के चक्कर में मत पड़ना।।


 


खिलो विश्व में चमक गगन में।


नि:स्पृह भावों ही जगना।।


 


अपने में ही जीना सीखो।


खुद को अपना जगत समझना।।


 


बहुरंगी दुनिया को त्यागो।


सत्व रंग में रंगे थिरकना।।


 


करो प्रदर्शन सत्य मनोहर।


सबके मन को हरते रहना।।


 


खुशबू बनकर गंध विखेरो।


चंदन बनकर दिव्य गमकना।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...