डॉ. रामबली मिश्र

समदर्शिता


सुंदर मन -मानव समदर्शन ।


सबके प्रति हार्दिक आकर्षण।।


 


कोई नहीं पराया होता।


हर कोई अपनाया होता।।


 


मन में सबके प्रति संवेदन।


सुरभित आग्रह और निवेदन।।


 


सदा कुशलता की अति चाहत।


करता नहीं किसी को आहत।।


 


भाग्यमान अति परम दयालू।


नहीं किसी के प्रति ईर्ष्यालू।।


 


सबके प्रति समता अति ममता।


सकल चराचर के प्रति नमता।।


 


विनम्रता वैभव अनुकूला।


नहीं यहाँ कुछ भी प्रतिकूला।।


 


ऊँच-नीच का भेद नहीं है।


शोक-कष्ट-दुःख-खेद नहीं है।


 


समतामूलक ज्ञान संपदा।


नहीं किसी प्रकार की विपदा।।


 


समतल में विश्वास अलौकिक।


सदा घृणित है काम अनैतिक।।


 


नैतिक-मानवता का पोषण।


न्याय पंथ का शुभ उद्घोषण ।।


 


वैरागी आदर्श महातम ।


सत्यप्रकाशित मिटत गहन तम।।


 


सदानंद संतुष्ट सदा प्रिय।


आत्मतोषमय परम दिव्य हिय।।


 


इच्छारहित समादृत सममय।


निष्कामी शिवगेहदेहमय।।


 


समदर्शिता सहज परिभाषित।


हो जिसपर यह जग आधारित।।


 


सबमें पावन भाव जगे बस।


समत्वयोगी ज्ञान पगे बस।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...