बेटी
जिसे आज अपना,बनाकर चले हैं।
वही दाग घर में, लगाकर चले हैं।।
सुरक्षित नही है, यहां पाल्य घर में।
नजर अब पड़ोसी, गड़ाकर चले हैं।।
अजब मस्त मानव,करे कृत्य दानव।
सही आग मन में, लगाकर चले हैं।।
यहाँ कोख बेटी, मशीनें दिखाये।
भला वंश बेटा, चलाकर चले हैं।।
पले कोख बेटी, पता जो किये थे।
अजन्में शिशु को,मिटाकर चले हैं।।
अजन्मी धरा पर, बने ये कसाई।
उसे कोख में ही, सुलाकर चले हैं।।
सुता क्यों पराई , करें भेद ज्ञानी।
दिये मौत उसको,गड़ाकर चले हैं।।
बिना जग दिखाये,किये जीव हत्या।
अनैतिक किये ये, पताकर चले हैं।।
हुए चार दिन ही,बियाही गयी थी।
दहेजी बली में, चढ़ाकर चले हैं।।
यहाँ हर कदम पर ,पले है दरिंदे ।
हवस भूख अपनी,मिटाकर चले हैं।।
डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी
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