तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-1
देवाधिदेवम् गिरिजापतिम,कण्ठ गरल धारकम।
भालचंद्र अलंकृतम, देवसरिताम शिरसि वाहकम।।
कर्पूर गौर गातम, उर व्याल हार शोभितम।
नमाम्यहम महेश्वरम, रामप्रियम श्रीशंकरम।।
नमाम्यहम रघुनंदनम,इक्ष्वाक्कुलस्य भूषणम।
पीत वस्त्र धारकम,तापस जटा सुशोभितम।।
कटौ तूणीर वाहकम,पाणौ धनुष्च सायकम।
श्यामल शरीर शोभितम,पंकज विशाल लोचनम।
सानुजेन पत्नि-पथिगतम,श्री रामचंद्र सुंदरम।
नमाम्यहम-नमाम्यहम,नमाम्यहम-नमाम्यहम।।
जाको नेह नहीं प्रभु-चरना।
ताको मिलै कहीं नहिं सरना।।
एकबेरि रघुबर बन माहीं।
भूषन कुसुम सीय पहिनाहीं।।
बैठी फटिक-सिला सिय माता।
सुंदर छबि रह सुंदर गाता।।
सुत इंद्रइ जयंत लखि सीतहिं।
प्रभु-बल परखन आवा तुरतहिं।।
काग भेष धरि आय जयंता।
चोंच मारि सिय उड़ा तुरंता।।
सीय-रुधिर रघुबर जब जाने।
धरि धनु सींक बान संधाने।।
जदपि राम सभ जन हितकारी।
पर प्रभु करहिं दलन अपकारी।।
ब्रह्म-बान प्रभु तेहिं पे झोंका।
पावे सठ नहिं कतहूँ मोका।।
भागै बिकल होय भयभीता।
तिनहुँ लोक नहिं पावै मीता।।
कोउ न हो सहाय प्रभु-द्रोही।
जग नहिं सरन राम-बिद्रोही।।
देखि बिकल तब नारद कहहीं।
तव सहाय सठ कोउ नहिं करहीं।।
तुरत जाहु तुम्ह प्रभु के पाहीं।
सरन मिलै बस रामहिं छाहीं।।
तुरतयि जाइ गहेसि प्रभु-चरना।
रच्छ माम् कहि माँगा सरना।।
जग जानै प्रभु-कृपा-सुभावा।
कबहुँ न प्रभु मा कृपा-अभावा।।
दोहा-कृपा निधानइ प्रभु-कृपा,बहुत मिलै नहिं थोड़।
एक नयन करि जयंतहिं,दियो प्रभू तेहि छोड़।।
पाप जयंतहिं जदपि बड़,छिमा करन नहिं जोग।
पर तिसु आरत बानि सुनि, दीन्ह नयन इक भोग।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें