डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भारत की बेटियाँ


भारत का नाम रौशन,करतीं हैं बेटियाँ,


नित-नित नवीन शोधन,करतीं हैं बेटियाँ।


 


यद्यपि ये कोमलांगी,होतीं हैं बेटियाँ,


कर लेतीं श्रम कठिन,फिर भी ये बेटियाँ।।


 


जल में हों,चाहे नभ में,होवें धरा पे वे,


नारी-प्रभा को शोभन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


वतन की आन-बान थीं,पहले भी बेटियाँ,


झंडे का आज रोहण, करतीं हैं बेटियाँ।।


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कर्तव्य शासकीय,या हो प्रशासकीय,


सियासती सुयोजन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


होतीं अक्षुण्ण कोष ये,असीम शक्ति का,


कुरीतियों का रोधन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


साहस अदम्य इनमें,रहता विवेक है,


संघर्ष का ही भोजन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


घर में रहें या बाहर,चाहे विदेश में,


शर्मो-हया का लोचन,रहतीं हैं बेटियाँ।।


 


जीवित हैं मूर्ति त्याग की,अपनी ये बेटियाँ,


नहीं कभी प्रलोभन,करतीं हैं बेटियाँ ।।


     


रिक्शा चला भी लेतीं,भारत की बेटियाँ,


परिवार का प्रबंधन,करतीं हैं बेटियाँ।।


             © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


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