द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-42
तहँ तब सभा बिसर्जित भवई।
निज-निज डेरा पे सभ गवई।।
दिवस बिता रजनी करि भोगा।
कंद-मूल-फल खाइ सुजोगा।।
उठि प्रातःमंदाकिनि-तीरा।
जाइ नहाए सभ तिसु नीरा।।
कइके पूजा-तरपन सबहीं।
गमनइ हेतु उपक्रम करहीं।।
मिलन-जुलन आपसु मा करहीं।
आसिष-नमन जथाक्रम लहहीं।।
समधिन सँग मिलि रानि सुनयना।
करैं प्रनाम अश्रु भरि नयना ।।
राम-लखन-सिय साथहिं-साथे।
प्रनमहिं जनक झकाये माथे।।
करि प्रनाम तब ते तहँ गयऊ।
बाम-जबालि-कुसिक जहँ रहऊ।।
रिषिन्ह चरन छूइ सिय-रामा।
लछिमन सहित गए गुरु-धामा।।
गुरु बसिष्ठ धाइ गर मिलहीं।
राम-लखन तहँ गुरु पगु धरहीं।।
दइ असीष सीतहिं गुरु कहहीं।
करिहैं पुर्न मनोरथ प्रभुहीं।।
तब सिय सँग अरु लखन समेता।
राम गए जहँ मातु-निकेता ।।
प्रथमहिं चरन कैकई परऊ।
तब पगु मातु सुमित्रा धरऊ।।
कैकइ कहहिं राम मृदु बानी।
राम छमहु मों बुझि अग्यानी।।
तब छुइ चरनन्ह मातु कुसिल्या।
लीं असीष जस लियो अहिल्या।।
दोहा-तेहि अवसर प्रभु राम सन, कहहिं भरत निज मर्म।
धरि सिर प्रभु तव पादुका,करउँ राज मम धर्म ।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें