डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8


 


तिसु श्रुति-नाक लहू अस बहही।


जनु गिरि रुधिर प्रपातइ श्रवही।।


    कहहि सुनहु तुम्ह हे मम भाई।


    बिलपत मग निज भ्रातहिं जाई।।


खर-दूषन तें ब्यथा बतावा।


धिक बल तोर जे काम न आवा।।


     लखि दुर्गति निज भगिनी कै तब।


     भए क्रुद्ध खर-दूषन सँग सब ।।


जोरि-जुहा-बुलाय निज सेना।


कह बिनास कुमार करि देना।।


   चलहिं भट्ट लइ आयुध नाना।


    आगे बहिन नाक बिनु काना।।


चलहिं भट्ट चढ़ि निज-निज बाहन।


झुंड-झुंड जनु बादर सावन ।।


     उछरत-कूदत धूरि अकासा।


     भरि ते चलहिं न होइ उदासा।।


गरजत-तरजत,भाँजत आयुध।


करहिं गुमानइ जीतब हम जुध।।


     बहु-बहु मुहँ अरु बहु-बहु बाता।


      कह मारब कोउ दुइनिउ भ्राता।।


लेइ चुरा हम तिरिया तिन्हकी।


अस कोउ कहहि देइ क धमकी।।


     आवत मग लखि असुरन्ह धावत।


      कहहिं राम लछिमन समुझावत।।


सियहिं कंदरा कहुँ लइ जाऊ।


असुर-लराई सिय नहिं भाऊ।।


     लछिमन लइ तब सीता माता।


     चले धारि आयसु निज भ्राता।।


बिहँसि राम कोदंड चढ़ाए।


देखि सत्रु-दल बिनु घबराए।।


दोहा-लागहिं राम चढ़ाइ धनु,बान्हि जटा सिर तंग।


         बाजत दुइ अहि पन्न-गिरि,कोटिक तड़ितहिं संग।।


        निज भुज धारि क चापु सिर,कटि तरकस रघुराज।


        चितवत मग जनु सिंह कोउ,अवत जूथ गजराज।।


       धरहु-धरहु कहि सत्रु-दल,बेगहिं पहुँचा धाइ।


        लगहिं राम जनु बाल रबि,घिरि मदेह बरिआइ।।


                                डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                                  9919446372


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