तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8
तिसु श्रुति-नाक लहू अस बहही।
जनु गिरि रुधिर प्रपातइ श्रवही।।
कहहि सुनहु तुम्ह हे मम भाई।
बिलपत मग निज भ्रातहिं जाई।।
खर-दूषन तें ब्यथा बतावा।
धिक बल तोर जे काम न आवा।।
लखि दुर्गति निज भगिनी कै तब।
भए क्रुद्ध खर-दूषन सँग सब ।।
जोरि-जुहा-बुलाय निज सेना।
कह बिनास कुमार करि देना।।
चलहिं भट्ट लइ आयुध नाना।
आगे बहिन नाक बिनु काना।।
चलहिं भट्ट चढ़ि निज-निज बाहन।
झुंड-झुंड जनु बादर सावन ।।
उछरत-कूदत धूरि अकासा।
भरि ते चलहिं न होइ उदासा।।
गरजत-तरजत,भाँजत आयुध।
करहिं गुमानइ जीतब हम जुध।।
बहु-बहु मुहँ अरु बहु-बहु बाता।
कह मारब कोउ दुइनिउ भ्राता।।
लेइ चुरा हम तिरिया तिन्हकी।
अस कोउ कहहि देइ क धमकी।।
आवत मग लखि असुरन्ह धावत।
कहहिं राम लछिमन समुझावत।।
सियहिं कंदरा कहुँ लइ जाऊ।
असुर-लराई सिय नहिं भाऊ।।
लछिमन लइ तब सीता माता।
चले धारि आयसु निज भ्राता।।
बिहँसि राम कोदंड चढ़ाए।
देखि सत्रु-दल बिनु घबराए।।
दोहा-लागहिं राम चढ़ाइ धनु,बान्हि जटा सिर तंग।
बाजत दुइ अहि पन्न-गिरि,कोटिक तड़ितहिं संग।।
निज भुज धारि क चापु सिर,कटि तरकस रघुराज।
चितवत मग जनु सिंह कोउ,अवत जूथ गजराज।।
धरहु-धरहु कहि सत्रु-दल,बेगहिं पहुँचा धाइ।
लगहिं राम जनु बाल रबि,घिरि मदेह बरिआइ।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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