डॉ0 हरि नाथ मिश्र

छठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6


 


सभ लइ जसुमति-रोहिनि संगा।


किसुनहिं धरि निज गोद उमंगा।।


    गउ कै पूँछि छुआवन लागी।


    अस उपाय करतै भय भागी।।


लइ गो-मूत्र कृष्न नहवावा।


सकल अंग गो-धूरि लगावा।।


    पुनि बारह अंगन महँ तासू।


     गोबर-लेपन कीन्ह उलासू।।


लइ-लइ 'केशव' प्रभु कै नामा।


रच्छा करउ सबहिं बलधामा।।


    संगहिं 'अंग न्यास'-'कर न्यासा'।


   ग्यारह बीज-मंत्र 'अज' बासा।।


कीन्ह आचमन गोपिन्ह तहवाँ।


'बीज न्यास' कृष्न करि जहवाँ।।


     'अज' प्रभु तव पगु रच्छा करिहैं।


      प्रभु 'मणिमान' घुटन तव रखिहैं।।


'यज्ञ पुरुष' जंघा-रखवारा।


'अच्युत' दैहैं कटि-बल सारा।।


     रच्छा उदर करहिं 'हयग्रीवा'।


     'केशव' हृदय-सुरच्छा लीवा।।


करिहैं 'सूर्य' कंठ कै रच्छा।


 'विष्णु' बाँह कहँ देहिं सुरच्छा।।


     'उरुक्रम' मुखहिं व 'ईश्वर' माथा।


     बालक कृष्न सुरछिहैं नाथा ।।


दोहा-बिबिध मंत्र अरु देव सभ,करिहैं रच्छा नाथ।


        ब्रज-गोपिहिं मिलि सभ कहहिं, करि अवनत निज माथ।।


             डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


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