छठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6
सभ लइ जसुमति-रोहिनि संगा।
किसुनहिं धरि निज गोद उमंगा।।
गउ कै पूँछि छुआवन लागी।
अस उपाय करतै भय भागी।।
लइ गो-मूत्र कृष्न नहवावा।
सकल अंग गो-धूरि लगावा।।
पुनि बारह अंगन महँ तासू।
गोबर-लेपन कीन्ह उलासू।।
लइ-लइ 'केशव' प्रभु कै नामा।
रच्छा करउ सबहिं बलधामा।।
संगहिं 'अंग न्यास'-'कर न्यासा'।
ग्यारह बीज-मंत्र 'अज' बासा।।
कीन्ह आचमन गोपिन्ह तहवाँ।
'बीज न्यास' कृष्न करि जहवाँ।।
'अज' प्रभु तव पगु रच्छा करिहैं।
प्रभु 'मणिमान' घुटन तव रखिहैं।।
'यज्ञ पुरुष' जंघा-रखवारा।
'अच्युत' दैहैं कटि-बल सारा।।
रच्छा उदर करहिं 'हयग्रीवा'।
'केशव' हृदय-सुरच्छा लीवा।।
करिहैं 'सूर्य' कंठ कै रच्छा।
'विष्णु' बाँह कहँ देहिं सुरच्छा।।
'उरुक्रम' मुखहिं व 'ईश्वर' माथा।
बालक कृष्न सुरछिहैं नाथा ।।
दोहा-बिबिध मंत्र अरु देव सभ,करिहैं रच्छा नाथ।
ब्रज-गोपिहिं मिलि सभ कहहिं, करि अवनत निज माथ।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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